अन्तिम पत्र
पिता के नाम.........१६-११-७६ !
श्रीमान पूज्य पिताजी,
आपके च्रणो में प्रणाम, आप की व श्री जगदंबा की कृपा से राज़ी खुशी हूँ. आपकी खुशिया तो आज आसमान से बरस रही हैं, शाहगढ़ के बाद एक ओर आपने सुन ही लिया होगा सादावाला भी ले लिया ओर दुश्मन को पूछ दबा के भागना पड़ा ओर बहुत नुकसान उठाना पड़ा. अपनी कंपनी तो जगदम्बा की कृपा से बिल्कुल ठीक है. यह काफला जहा जाता दुश्मन के छक्के छूट जाते हैं. सादेवाले से दुश्मन को मार भगाया ही था कि तनोट पर हज़ारो दुश्मनो ने हज़ारो आदमियों से घेरा डाल दिया ओर तोपखाने के गोलों व मोटोरो के गोलों की बोच्छार शुरू करदी लेकिन यह रात्ोड़ बच्चा बिका जी की औलाद कहा डरने वाला था डॅटा रहा.
मुझे उसी समय आखरी काम सादेवाले पर थोडा करना था जल्दी ख़तम कर ओर अपना काफला ले चल पड़ा हालकि उंटों को पाँच दिन हो गये थे पानी चारा मिले ओर जवानो को तीन दिन से रोटी पानी नही मिला था. लेकिन शूर-वीरता उनकी आखो से बरस रही थी ओर खून उबल रहा था. दिन ढलते ही जा पहुँचे, घेरा तोड़ डाला, फिर भी रात भर ओर कल दिन भर लड़ना पड़ा. दुश्मन की लाशे चारो ओर स्ड रही हैं ओर भाग गया अपनी मुँह की ख़ाके. यह जगदम्बा का मंदिर है वो कहा आने देती. अपना किसी का बाल भी बांका नही हुआ. आज शांति से काका भतीजा दारू से खुशियाँ मना रहे हैं बाकी बच्चों को प्यार करना.
मेजर जयसिंघ थेलासर
आपका प्रिय पुत्र पूरण