मरुधरा के लाल की जीवन गाथा !

राजस्थान का इतिहास भादुरी ओर बलिदान से भरा पड़ा हैं. इस राजस्थली पर अनेक वीर स्वदेश भक्ति के लिए शहीद हुए. मेजर पूरणसिंघ के शौर्या की कहानी अपूर्व है| आज मेजरसाहब हमारे बीच नही हैं, लेकिन इस अमीर शहीद का शौर्या आज भी याद करने से रोम रोम स्फुरित होने लगता हैं.| स्व. मेजर पूरणसिंघ ने अपना बलिदान देकर केवल बीकानेर का गौरव ही नही बढाया है, अपितु समूचे राजस्थान ओर माँ भारती के गौरव की भी रक्षा की है. इस अमर शहीद के सम्मान मे कुछ कहना सूर्या को दीपक दिखना हैं. आज स्व. मेजर पूरणसिंघ का नाम भारतीय वीर जवानो के लिए प्रेरणा बन गया हैं.

 

दो वर्ष की अल्प आयु ही में श्री पूरणसिंघ की माता का देहांत हो गया. अतः इनका पालन-पोषण इन के पिता ठाकुर कानसिंघजी की देख-रेख में बीकानेर में हुआ.| ६ बर्ष की अवस्था में आपको वाल्टर नोबल हाइस्कूल (अब सादुल पब्लिक स्कूल) में दाखिल किया गया. पाँचवी कक्षा पास करने के बाद आपको अजमेर के किंग जॉर्ज रायल इंडियन मिल्टरी स्कूल में भरती किया गया है. आपने दसवीं कक्षा तक सैनिक शिक्षा के साथ साथ शेषरिक शिक्षा भी प्राप्त की. तत्कालीन बीकानेर राज्य के आर्मी मिनिस्टर कर्नल ठा.श्री जीवराजसिंघ ने राज्य के खर्चे पर इन्हे पढ़ाने का दिया. अजमेर की शिक्षा पूर्ण करने पर सन् १९४५ में राज्य सरकार ने आपको बीकानेर ट्रैनिंग सेंटर में केडेट नियुक्त किया. एक बार मिल्टरी एडवाइजर के बीकानेर के दोरे के समय आप ट्रैनिंग कंपनी के एक सेक्शन की क्मांड कर रहे थे. निरक्षण के समय मिल्टरी एडवाइजर आपके कार्य से बहुत प्रसन्न हुए ओर उन्हों ने बीकानेर के तत्कालीन महाराजा स्व. महाराजा श्री सदुलसिंघजी को इन्हे देहरादून अकादमी में उच्च प्रशिक्षण के लिए भेजने की सिफारिश की. उसके लिए स्पेशल तोर पर इनका सेलेक्षन कर दिया गया. १९४६ में आप देहरादून अकादमी में गये ओर १९४७ में कमिशन प्राप्त कर बीकानेर आने पर आपको कर्नि इन्फेंट्री में एडजुटेंट के पद पर नियुक्त किया गया.

 

विभिन्न्रे रेजमेंटो में विभिन्न पदों पर अपनी शूरवीरता का परिचय देते हुए १९६५ में आपको जैसलमेर शेत्र में नियुक्त किया गया जहाँ ३० नवम्बर की तनोट के पास पाकिस्तानी सेनिको द्वारा घात लगाकर किए गये आक्रमण में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए.

 

प्रस्तोता
अभय प्रकाश भटनागर