तनोट मोर्चे पर मे. पूरणसिंघ... !
आग ओर धमाको के बीच आखों देखा बयान|
इतिहास मे राजस्थान का शेत्र भारत में ही नहीं अपितु संसार में अपनी अलग ही शान रखता हैं | भारत के अन्य प्रांतों के नागृिकक नदियों ओर कुओ से धरती को सिँचकर धार पैदा कस एक कीर्तिमान स्थापित करते हैं | किंतु राजस्थान के रण बांकुरे अपनी रैगिस्तानी धरती को अपने खून से सिँचकर शूरवीरों की फसल उगाकर एक कीर्तिमान स्थापित करते हैं | उन्हीं शूरवीरों में एक थे स्व. मेजर पूरणसिंघ, जिसने अपने शौर्य, साहस ओर निष्ठा मे. अपनी मात्रभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया |
स्व. मेजर पूरणसिंघ जैसे रण बांकुरे के अदम्य साहस ओर शूरवीरता को निकट से देखने तथा उनकें कारनामों की समाचार पत्रों तथा आकाशवाणी के माध्यम से जन साधारण तक पहुँचाने का काम मुझे सौंपा गया था |
बीकानेर के दूंगर कॉलेज के खेल के मैदान में एक साद खेलने वाले हम चार खिलदाई लगभग २५ वर्ष बाद जैसलमेर के रेतीले मैदान पर सन् १९६५ में एक साथ खेलने के लिए फिर इकट्ठे हुए-मेरे कॉलेज के अन्य तीन खिलाड़ी थे-श्री दुलेसिंघ, कॉंमांडेंट आर.ए.सी. जैसलमेर, मेजर जयसिंघ (कड़वासर), कार्यवाहक कमॅंडेंट, गंगा जैसलमेर रिसाला ओर मेजर जयसिंघ (थेलासर) क्मानडर "बी" स्क़वाड्रन |
सन् १९६५ का भारत-पाक युद्ध, जहा भारत की अन्य सिमाओ पर ५ सितम्बर से २३ सितम्बर की मध्य रात्रि (युद्ध विराम) तक लड़ा गया वहा राजस्थान की सीमा पर ८-६ सितम्बर की मध्य रात्रि से १० जन्वरी १९६६ तक जब भारत ओर पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझोता हुआ |
राजस्थान के अधिकांश पत्रकारों को युद्ध विराम के बाद होने वाले भारत-पाक संघर्ष के समय राजस्थान के आग्रिम मोर्चो पर जाने का अवसर मिला ओर मुझे अपने देश के रणबाकुरों की वीरता के कारनामे देखने ओर उनकी वीर गाथाओं को जन साधारण तक पहुचाने का अवसर दोनों संघर्षों में मिला |
पाँच सितम्बर की बीकानेर में रवाना होकर एक दिन रास्ते में पोकरण ठहर कर ७ सितम्बर को जैसलमेर पहुँचा. डाक बंगले में राजस्थान के सीमा आयुक्त श्री सुन्दर लाल खुराना (अब केंद्रीय ग्रहमंत्री) ओर राजस्थान पुलिस के डी.आई.जी. (ख़ुफ़िया विभाग) पं संतरम शर्मा जो मेरे से पहले वहा पहुँच गये थे, उनसे मुलाकात हुई | वहीं पर श्री दुलेसिंघ ने बताया कि दोनों जयसिंघ, जैसलमेर रिसाले का साथ उँटो पर जैसलमेर पहुँच रहे है ओर जैसलमेर के सीमा की सुरक्षा का भार अर.ए.सी. ओर रिसाले को सौंपा गया हैं |
जैसलमेर का मोर्चा आठ सितम्बर को ही गरम हो गया था. ८/६ की दरमियानी रात को पाकिस्तानी सैनिकों की एक टुकड़ी ने अपनी चौकी इस्लामगढ़ से हमारी सीमा पर घुसकर हमारी भुट्टे वाली चौकी पर धावा बोला जॅहा हमारी पुलिस के केवल मात्र दस जवान थे | जैसलमेर मोर्चे का सबसे पहला समाचार मैंने १० सितम्बर को आकाशवाणी तथा अन्य पत्रों को भेजा जिस दिन हमारी भुट्टेवाली चौकी की ओर जवानों ने सात पाकिस्तानियों लाशे जिनमें हमला करने वाली पाकिस्तानी टुकड़ी के कम्पनी कमांडर की भी थी | उनके साथ आया वीर पूनमसिंघ का मृत शरीर | जैसलमेर ज़िल्ले के हाबूर गाँव के २५ वर्षीए पूनमसिंघ ने जिस वीरता-ओर साहस का परिचय दिया उससे राजस्थान के प्राचीन यौद्धाओं की याद ताज़ा हो गई | अपनी चौकी का गोला बारूद ख़तम होने के बाद वीर पूनम ने मुक़ाबले में मारे गये पाकिस्तानियों की लाशो पर संधि हुई कमर पेटियों ओर झोलों से गोलियाँ निकालकर बचे हुए पाकिस्तानियों से आखरी दम तक मुकाबला करता रहा. वीर पूनम की मर्नोप्रात राष्ट्रपति का पुलिस पदक प्रदान किया गया |
वीर पूनम की मृत्यु का बदला मेरे साथी मेजर जयसिंघ (थेलासर) नै दस दिन के अंदर ही ले लिया | मेजर जयसिंघ के नेतत्व में रिसाला की 'बी' कम्पनी ओर जैसलमेर अर.एस.सी. की चौथी ब्टेलियन की एक कम्पनी ने इस्लामगढ़ के पास पाकिस्तानी चौकी धुनेवाला पर धावा बोला ओर चौकी की रक्षा करने वाले कम्पनी कमांडर ओर उसके ४२ जवानों को मार गिराया | केवल इतना हे नही हमारे जवानों ने पाकिस्तानी गाड़ियों को जलाकर राख कर दिया, उनके पेट्रोल के भंडार को जला दिया तथा चौकी को धरती के साथ मिला दिया |
२३ सितम्बर की अर्ध रात्रि तक जैसलमेर की सीमा पर पाकिस्तानियों ने जीतने भी हमले किए उनको विफल करने वाला केवल मात्र गंगा रिसाला था जिसकी एक टुकड़ी मेजर जयसिंघ (थेलासर) के नेतत्व में लड़ रही थी ओर उसको सहयोग दे रहे थे चौथी ब्टालियन अर.ए.सी. के जवान जिसकी कमान दूसरे साथी दुलेसिंघ के हाथ में थी |
२३ सितम्बर की अर्ध रात्रि को युद्ध विराम होते ही कश्मीर ओर पंजाब की सीमाओं पर गोलियाँ चलने की आवाज़ बंद हो गई ओर दोनों ओर के जवान जॅहा थे वहीं अपनी अपनी खदकों में शांत हो गए किन्तु राजस्थान की सीमा पर पाकिस्तानी हमारी उन चौकियों में घुस आए जिन्हें हमने स्व्य कुछ दिन पूर्व खाली करदी थी | पाकिस्तानियों ने यह चाल इसलिए चली क्योंकि वह कश्मीर ओर पंजाब की सीमा पर युद्ध के समय अपना बहुत सा शेत्र गँवा बेंठा था | कश्मीर में हाजी पीर की चौकी के भारतीय सेना के हाथ में आ जाने से पाकिस्तान की नाक़ काट गई थी ओर उस कटी हुई नाक़ को वापिस जोड़ने के लिए उसने राजस्थान की सीमा में कयरों की तरह घुसपेट करके हमारी खाली चौकियों, विशेष कर बीकानेर ओर जैसलमेर की चौकियों में आकर बेथ गए ताकि पाकिस्तान सरकार राष्ट्र संध में शांति वार्ता के समय यह दावा पेश कर सके कि युद्ध विराम के समय उसके पास भारत का कितना इलाक़ा क़ब्ज़े में था | इन पाकिस्तानी घुस्पेथियो के विरुढ़ सामरिक अभियान चलाने का दायित्व गंगा-जैसलमेर-रिसाला (१३वीं ग्रेनेडियीयर्स) की सौंपा गया क्यूंकी युद्ध विराम के समय समस्त जैसलमेर ओर बीकानेर सीमा पर यही एक यूनिट उपलब्ध थी | राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया (अब राजपाल आंध्र) उस समय जैसलमेर रिसाले के कमांडरों को कहा कि मैंने प्रतिगया करली है कि राजस्थान की धरती को पाकिस्तान के चुंगल से छुड़ाना है | रिसाला के कमांडरों ने आश्वासन दिया कि हम आपकी प्रतिगया पूरी करके दिखा देंगे |
मुख्यमंत्री श्री सुखाड़िया की प्रतिगया को पूरा करने का काम जैसलमेर शेत्र में गंगा जैसलमेर सिसाला की 'बी' व 'सी' स्क्वाड्रन को सौंपा गया जिनके कमाँडर क्रमश मेजर जयसिंघ (थेलासर) व मेजर पूरणसिंघ थे | थोड़े दिनों के बाद मेजर पूरणसिंघ को जैसलमेर की शाहगढ़ की चौकी को पाकिस्तानी घुस्पेथियो से छुड़ाने का भार सौंपा गया ओर मेजर जयसिंघ (थेलासर) को तनोट की रक्षा का दायित्व दिया गया |
शाहगढ़ की भुगोलिक स्थिति ऐसी है कि इसके चारों ओर १००-१५० फीट उँची कच्ची रेत के टीले हैं जॅहा पर जीप गाड़ी भी नही चल सकती | इस इलाक़े मेी केवल मात्र उँट पर ही सफ़र हो सकता है | इस इलाक़े में पाकिस्तानी घुस्पेथियो ने पहले से ही पॉर्चे बना रखे थे ? ३० अक्तूबर को मेजर पूरण शाहगढ़ पहुँचे | विपरीत स्थिति के बावजूद उन्होनें पाकिस्तीनियों पर पो फटने से पहले धावा बोल दिया जिससे पाकिस्तानी सैनिकों के पाँव उखड़ गए ओर वे अपने अनेक साथियों की लाँशे छोड़कर अपनी सीमा में भाग गए | इस सफलतापूर्ण अभियान से शाहगढ़ से लेकर पाकिस्तान की अंतराष्ट्रीय सीमा तक, जो एक महत्वपूर्ण इलाक़ा है, उस पर हमारे जवानों का क़ब्ज़ा हो गया |
शाहगढ़ पर वापिस भारतीय पताका फिरने के बाद लोंगेवाला ओर सादेवाला ओर, सादेवाला व अच्छरी तीबा के रास्ते काटने का भर मेजर पूरणसिंघ व मेजर जयसिंघ (थेलासर) को मिला | हमले से पहले दोनों स्थानों पर दुश्मन की आने वाली गाड़ियों को इन रण बांकुरों ने तबाह कर दिया | इन दोनों रास्तों को काटने के बाद १५, १६ न्वेम्बर को हमारे वीरों ने सदेवाला पर क़ब्ज़ा कर लिया किंतु इस अभियान में तीसरी ग्रेनेडीयर के मेजर ग्रेहवाल घायल हो गए | सदेवाले की रक्षा का भर मेजर पूरणसिंघ को सौंपा गया | इस तरह मेजर पूरणसिंघ लगातार एक के बाद दूसरी लड़ाई जीतते गए |
१६ नबम्बर को, पाकिस्तानियों ने, जो पहले से ही तनोट पर क़ब्ज़ा करने की योजना बना रखी थी, हवाई जहाज़ों द्वारा जाँच पड़ताल तथा गोलाबारी की | १६-१७ की दरमियानी रत को एक बहुत बड़ी सेना ने तनोट को तीन ओर से घेर लिया ओर साथ हे जैसलमेर से तनोट जाने वाले रास्तों को काट दिया ओर उषा काल के समय तनोट पर भयंकर गोला बरी शुरू करदी. हमारी गाड़ियाँ, जो जैसलमेर से हमारे उँटो के लिए चारा घास तथा जवानों के लिए राशन ला रही थी उन्हें बारूदी सुरंगों से उड़ाना शुरू कर दिया | इसी रास्ते पर घंटियलीजी के जगदम्बा मन्दिर को खाड़ित कर उसे भ्रष्तकार दिया | ऐसी विकट स्थिति में मेजर पूरणसिंघ को तनोट पहुँचने का आदेश मिला | तनोट चारी तरफ दुश्मन से घिरा हुआ था मेजर पूरणसिंघ के लिए वहा पहुँचना असम्भव था | मेजर पूरणसिंघ ने बड़ी होशियारी से तनोट के लिए पाकिस्तानी सेना की पहुँचने वाली इमदाद को सदेवाला की ओर बढ़ने नही दिया | परिणामस्वरूप तनोट पर धावा करने वाले पाकिस्तानियों पाँव उखड़ गए ओर मेजर पूरणसिंघ १६ नवम्बर को तनोट पहुँच गए ओर तनोट की रक्षा करने वाले अपने काका (मेजर जयसिंघ थेलासर) को बधाई दी | इस दिन तनोट से मेजर पूरणसिंघ ने अपने पूज्य पिता ठाकुर कानसिंघ को अपने सफल अभियानों का वर्णन करते हुए पत्र लिखा जो उसका अंतिम पत्र था | तनोट पहुँच कर मेजर पूरणसिंघ ने चार पाँच दिन तक तनोट की रण भूमि को, दुश्मन द्वारा बिछाई गई बारूदी सुरंगों तथा उन की छोड़ी हुई लाँशो से साफ किया |
२५ नवम्बर को मेजर जयसिंघ (थेलासर) को तनोट की रक्षा का भर अपने भतीजे मेजर पूरणसिंघ को सौंपकर धुनेवाला की ओर से बढ़ने वाली पाकिस्तानी सेना को रोकने का आदेश दिया | इस प्रकार २६ नवम्बर को मेजर पूरणसिंघ केप्त्न सहाय ओर तीन सैनिक जवानों के साथ तनोट से सदेवाला जा रहे थे | दुश्मन ने तनोट से ६ मील दूर पश्चिम में टिबो के बीच रास्ते में बारूदी सुरंगें बिछा रखी थी ओर तीबों की चोटियों पर घाट लगाने वाले सैनिक टुकड़िया लगा दी | ज्योहीं मेजर पूरणसिंघ की जीप अपने साथियों सहित बारूदी सुरंगों के जल में फँसी ओर जीप को आग लग गई | उसी समय दुश्मन जो टिबो की चोटियों पर पहले से ही बेंठे हुए थे मेजर पूरणसिंघ की पार्टी पर गोलियों की बौछार शुरू करदी | मेजर साहब के सब साथी दुश्मन की गोलियों का शिकार हो गए | यधपि वह स्वय बुरी तरह से घायल हो गए फिर भी वह जलती जीप से कूद पड़े ओर कुछ गज की दूरी पर रेंगते हुए आयेज बढ़कर मोर्चा लिया ओर अकेले ही दुश्मन पर गोलियाँ बरसते रहे |
सदेवाला की ओर से आने वाली एक गाड़ी से घबराकर दुश्मन मेजर पूरणसिंघ को छोड़कर भाग गए | मेजर सहब को तनोट लाया गया जॅहा उन्होंने थोड़ी देर बाद अपनी मट्रभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी |
सोर हटे नहीं समर सू, हठ निभावे पूर |
सीस नमावे सुर नहीं, सीस कटावे सुर ||